Wednesday 12 September 2018

अनूक्तम्-५ चत्वारः लड्डुकाः

चत्वारः लड्डुकाः 
(अनूदितलेखः)

बहोः कालात् पूर्वम् इदं संवृत्तम्। वृन्दावने श्रीकृष्णमन्दिरे प्रतिदिनम् अर्चकः अत्यन्तं भक्तिभावेन युक्तः सन् सेवां करोति स्म। सः प्रतिदिनं  भगवतः आरात्रिकां करोति, नैवेद्यं समर्पयति च। यदा शयनं कारयति, तदानीं प्रतिनिशायां चतुरः लड्डुकान् भगवतः शय्यायाः समीपे न्यस्यति स्म। तस्य भावः एवमासीत्, यदि रात्रौ बुभुक्षा बाधेत तर्हि भगवान् उत्थाय लड्डुकान् खादिष्यतीति। अन्येद्युः प्रातः यदा सः देवालयद्वारम् उद्घायटति, तदा भगवतः शय्यायां प्रसादः विकीर्णः दृश्यते स्म। अतः तेनैव भावेन सः तथा आचरति स्म।
    कदाचित् भगवन्तं शाययित्वा स चतुर्णां लड्डुकानां न्यासं व्यस्मरत्। स द्वारं पिधाय निरगच्छत्। विभावर्यां एकवादनोपान्ते, यस्मात् आपणात् सः पूजकः बून्दीलड्डुकान् आनयति स्म, तस्य वृद्धस्य आपणम् उद्घाटितमासीत्। स गेहं गन्तुं यावद् उद्यतः तदैव कश्चन बालकः आयात्, अवदच्च—“तात, मह्यं बूंदीलड्डुकान् देहि।” इति। आपणिकः अवदत्—“शिशो, लड्डुकाः तु अनवशिष्टाः। अधुना अहं आपणं पिधाय गन्तास्मि।” स बालोवदत्—“भवान् अन्तः गत्वा पश्यतु, भवतः निकटे चत्वारः लड्डुकाः अवशिष्यन्ते।” इति। तस्य महता हठेन आपणिकः अन्तः गत्वा अपश्यत्। तत्र तथ्येन चत्वारः लड्डुकाः आसन्। यतो हि सः मन्दिरं नागच्छत्। आपणिकः उक्तवान्—“धनं देहि” इति। बालकः अगदत्—“मत्समीपे धनं तु नास्ति।” इति वदन् तूर्णं स्वहस्तात् सुवर्णकङ्कणं निष्कास्य आपणिकमयच्छत्। आपणिकः इत्थमुवाच—“बाल, धनं नास्ति चेत् न भवतु नाम। श्वः पितरं वद, अहं तस्मादेव गृह्णामि।” परन्तु सः माणवकः नाङ्गीचकार। कङ्कणं आपणिकं प्रति क्षिप्त्वा अधावत्।
    अपरेद्युः देवपूजकः कपाटम् अपावृतवान्। तत्र भगवतः हस्तयोः कङ्कणं नासीत्। यदि चोरः चोरयेत्, तर्हि केवलं कङ्कणं न अपहरेत्। कञ्चित् कालं पश्चात् तत्र सर्वतः वृत्तमिदं प्रसृतम्। यावत् स आपणिकः अजानात्, स निशीथिन्यां घटितं सर्वम् अस्मरत्। सः आपणे क्षिप्तं कङ्कणमन्विष्य अर्चकं दर्शयित्वा प्रवृत्तम् निश्शेषं श्रावितवान्। तदा अर्चकः, ‘गतयामिन्याम् अहं लड्डुकां न न्यस्तवान्’ इति विस्मृतवानिति चास्मरत्। अतः भगवान् स्वयं लड्डुकान् प्राप्तुम् आपणं गतावानिति।
    यदि भक्तौ भक्तः कामपि सेवां विस्मरति तदा भगवान् स्वपक्षतः तस्य पूरणं करोति।

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నాలుగు లడ్డూలు
చాలా కాలం క్రితం సంగతి. బృందావనంలో కృష్ణుని గుడి లో ప్రతి రోజు అర్చకుడు చాలా గొప్ప భక్తి భావంతో సేవ చేసేవాడు. అతడు ప్రతి దినం భగవంతుడికి హారతి ఇస్తాడు. నైవేద్యం పెడతాడు. ప్రతి రాత్రి నాలుగు లడ్డూలను భగవంతుడి శయ్య దగ్గర పెడుతుండేవాడు. ఒకవేళ రాత్రికి ఆకలి అయితే భగవంతుడు లేచి లడ్డూలను తింటాడు అని అతడు అనుకునేవాడు. మరుసటి రోజు పొద్దున అతడు దేవాలయం తెరవగానే అక్కడ భగవంతుని ప్రసాదం అటూ ఇటూ పడి కనిపించేది. అందువల్ల అదే భావనతో అతడు ఆ విధంగా చేసేవాడు.
    ఒకసారి భగవంతుడిని పడుకోబెట్టి అతడు నాలుగు లడ్డూలను పెట్టటం మరిచిపోయాడు. తలుపులు మూసి వెళ్ళిపోయాడు. రాత్రి ఒంటి గంట ఆ ప్రాంతాల ఏ అంగడి నుంచి అర్చకుడు బూంది లడ్డు తీసుకొచ్చేవాడో, ఆ వృద్ధుని అంగడి తెరిచే ఉంది. అంగడి అతను ఇంటికి వెళ్ళటానికి సిద్ధం అవుతుండగా అప్పుడే ఒక చిన్న బాలుడు వచ్చి ఇట్లా అన్నాడు- “అయ్యా, నాకు బూందీ లడ్డూ పెట్టు.” అని. అంగడి అతను- “నాయనా, లడ్డూలు అన్నీ అయిపోయాయి కదా. ఇప్పుడు నేను దుకాణం మూసేసి ఇంటికి వెళ్ళిపోతున్నాను.” అని అన్నాడు. బాలుడు- “మీరు లోపలికి వెళ్లి చూడండి. మీ దగ్గర నాలుగు లడ్డూలు మిగిలి ఉంటాయి.” అని. అన్నాడు. ఆ అతడి పట్టుదలను చూసి అంగడిఅతను లోపలికి వెళ్ళి చూశాడు. అక్కడ నిజంగానే నాలుగు లడ్డూలు ఉన్నాయి. అతడు ఆ రోజు మందిరం వెళ్ళలేదు కదా, అందువల్ల. అంగడి అతను- “డబ్బులివ్వు” అని అన్నాడు. బాలుడు- “నా దగ్గర ఏమీ లేదు.” అని అంటూ తన చేతి నుండి బంగారు కంకణాన్ని తీసి అంగడి అతడికి ఇచ్చాడు. అప్పుడు అంగడి అతను- “నాయనా, డబ్బు లేక పోతే పోనీ. రేపు మీ నాన్నకు చెప్పు. నేను అతడి నుండి తీసుకుంటాను.” కానీ ఆ పిల్లవాడు ఒప్పుకోలేదు. కంకణాన్ని దుకాణంలోకి విసిరేసి పరిగెత్తి వెళ్ళిపోయాడు.
    మరుసటి రోజు పూజారి ఆలయం తలుపులు తెరిచాడు. దేవుడి చేతిలో కంకణం లేదు. ఒకవేళ దొంగ దొంగిలిస్తే ఒక్క కంకణాన్ని మాత్రమే దొంగిలించే వాడు కాదు. కొద్దిసేపటికే ఈ సంఘటన అక్కడంతా వ్యాపించింది. ఈ సంఘటన ఆ అంగడిఅతను వినంగానే రాత్రి జరిగిందంతా గుర్తు చేసుకున్నాడు. అంగడిలోకి విసిరిన కంకణాన్ని వెతికి, అర్చకునికి చూపించి, జరిగింది అంతా చెప్పాడు. అప్పుడు అర్చకుడు ‘నిన్న రాత్రి నేను లడ్డూలను పెట్టలేదు కదా, మరిచిపోయాను’ అని గుర్తు చేసుకున్నాడు. అందువల్ల భగవంతుడు స్వయంగా లడ్డూలను పొందటానికి దుకాణానికి వెళ్ళాడు. ఒకవేళ భక్తిలో భక్తుడు ఏదైనా మర్చిపోతే అప్పుడు భగవంతుడు తన వైపు నుండి దాన్ని పూర్తి చేస్తాడు.
[వాట్సాప్ లో వచ్చిన ఓ సందేశానికి తెలుగు అనువాదం]
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चार लड्डू

बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में श्रीबांके बिहारी जी के मंदिर में रोज पुजारी जी बड़े भाव से सेवा करते थे। वे रोज बिहारी जी की आरती करते , भोग लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख लगेगी तो वे उठ कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था। इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
            एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद वे चार लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे बूंदी के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान खुली थी। वे घर जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक आया और बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए। बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने कहा - पैसे दो। बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो , कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग गया।
           सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो उन्होंने देखा कि बिहारी जी के हाथ में कंगन नहीं है। यदि चोर भी चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी देर बाद ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई। जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और पुजारी जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब पुजारी जी को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने गए थे।
           यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।

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