Wednesday 12 September 2018

अनूक्तम्-९ गुरोः एव शिक्षितव्यम्

गुरोः शिक्षितव्यम्

कस्मिंश्चित् नगरे कश्चन लघुवृत्तिवान् आसीत्। तस्य विवाहः जातः। पत्नी यदा गृहमागता, तस्याः पाकज्ञानं नास्तीति ज्ञातम्। सोऽपि पाकज्ञानशून्यः। किंकर्तव्यताविमूढौ सन्तौ भोजनालयाद् अन्नमानयतः स्म। दिनानि व्यतीतानि, भोजनाय धनव्ययः अधिकः भवति स्म। अतः कथञ्चित् पाकः शिक्षितव्य इति निश्चिनुतः। पाकः कथं करणीय इति पुस्तकमानीय उभौ सम्यक् अपठताम्। कदाचित् सुदिने गृहे पाकमारभेताम्। प्रथमम् ओदनं पचाव इति निश्चित्य पुस्तकमपश्यताम्। तत्र “स्थाल्यां चषकद्वयं तण्डुलं स्वीकृत्य ततः द्विगुणितं जलं न्यस्य चुल्ल्यां धातव्यम्” इति लिखितम्। तौ तथैव अकुरुताम्। अर्धघण्टा व्यतीता किन्तु अन्नं न पक्वम्। होराकालः व्यतीतः, एकं बीजमपि न पक्वम्। पुस्तके यथालिखितं तथैवाचरितम्। तथापि समस्या का इति न ज्ञातं ताभ्याम्।
    ततः कश्चित् सहवृत्तिवान् तद्गृहमागच्छत्। दम्पत्योः मुखे म्लाने दृष्ट्वा विषयं विज्ञाय पाकशालां गत्वा अद्राक्षीत्। चुल्ल्यां स्थाली, तस्यां तण्डुलं, तस्मिन् जलं- सर्वं तु सम्यगासीत्, किन्तु चुल्ली ताभ्यां न प्रज्वालिता। “विनाग्नि ओदनविक्लेदः कथम्?” इति तेनोक्तम्। “तत् तु पुस्तके नास्ति” इति तौ जायापती अवदताम्। “पुस्तके नास्तीति कारणात् किं सामान्यज्ञानं विस्मर्यते? अस्तु, त्यजतां पुस्तकम्। अनुभवज्ञं कञ्चिद् आश्रित्य पाकं शिक्षताम्। आचरणयुक्तः प्रयोगः सम्यज्ज्ञायते”। इति उक्त्वा स गतवान्।
    सामान्यविद्याभ्यः अपि सत्यां गुरोरावश्यकतायां, सूक्ष्माध्यात्मिकविद्याभ्यः गुरोः स्थानविषये किं वा वक्तव्यम्? ग्रन्थानां पठनमात्रेण आध्यात्मिकज्ञानं न संसिध्यति। तत्र विषयपरिज्ञानं सद्गुरुभिः विज्ञाय एव परिपूर्णतां याति नरः। आध्यात्मविद्या आचरणविद्या नाम। गुरोः तस्य प्राप्त्या एव सफलतां लभते नरः॥
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గురుముఖతః నేర్చుకోవాలి
    ఒకానొక పట్టణంలో ఒక చిరుద్యోగి ఉండేవాడు. అతడికి కొత్తగా పెళ్లి అయింది. భార్య కాపురానికి వచ్చిన రోజే.. ఆమెకు వంట రాదని తెలిసింది. ఆయనకూ వంట రాదు. ఏమి చేయాలో తోచక.. రోజూ పట్టణంలోని ఒక హోటల్‌లో భోజనం తెప్పించుకునేవారు. రోజులు గడుస్తున్నాయి. భోజనానికి అయ్యే ఖర్చు ఎక్కువైపోయింది. ఇలా లాభం లేదనుకున్నారు. ఎలాగైనా వంట నేర్చుకోవాలని కంకణం కట్టుకున్నారు.
        ఒక వంటల పుస్తకం తెచ్చుకొని ఇద్దరూ పూర్తిగా చదివారు. ఒక మంచి రోజు చూసి.. ఇంట్లో వంట ప్రారంభించారు. ముందుగా అన్నం వండాలని నిశ్చయించుకున్నారు. పుస్తకంలో చూడగా.. ‘రెండు గ్లాసుల బియ్యం ఒక గిన్నెలోకి తీసుకోవాలి. అందులో నాలుగు గ్లాసుల నీళ్లు పోయాలి. దానిని పొయ్యి మీద ఉంచాలి’ అని ఉంది. ఆ ప్రకారంగానే చేశారు. అరగంట దాటినా.. బియ్యం ఉడుకు పట్టలేదు. గంట దాటుతోన్నా.. ఒక్క మెతుకూ ఉడకలేదు. పుస్తకంలో ఉన్నది ఉన్నట్టుగా చేసినా.. అన్నం ఎందుకు కాలేదనుకున్నారు.
   
    ఇంతలో ఆ ఉద్యోగి స్నేహితుడు వాళ్లింటికి వచ్చాడు. దంపతుల ముఖాల్లో కలవరం చూసి.. విషయం ఆరా తీశాడు. జరిగింది చెప్పగా.. వంటింట్లోకి వెళ్లి చూశాడు. పొయ్యి మీద గిన్నె, గిన్నెలో బియ్యం, అందులో నీళ్లు పోశారు గానీ, పొయ్యి వెలిగించడం మర్చిపోయారు. ‘మంట లేకుండా.. అన్నం ఎలా అవుతుంది?’ అన్నాడు స్నేహితుడు. ‘ఆ విషయం పుస్తకంలో లేదుగా!’ అని అమాయకంగా ప్రశ్నించారు దంపతులు. ‘పుస్తకంలో లేదని ఇలాంటి విషయాలు గుర్తించకపోతే ఎలా? కొన్ని విషయాలు పుస్తకాలపై ఆధారపడటం కన్నా.. అనుభవజ్ఞుడైన వ్యక్తి దగ్గర నేర్చుకోవడం మంచిది. అప్పుడు పద్ధతులు, ఆచరణాత్మక ప్రయోగాలు చక్కగా తెలుస్తాయి’ అని చెప్పి వెళ్లిపోయాడు స్నేహితుడు.        సామాన్య విద్యలకే... గురువు అవసరం అయినపుడు, అతి సూక్ష్మమైన ఆధ్యాత్మ విద్యకు గురువు ఆవశ్యకత ఎంతుందో తెలుసుకోవచ్చు. గ్రంథములు చదివినంత మాత్రాన ఆధ్యాత్మికత జ్ఞానం సిద్ధించదు. అందులోని విషయాలను సద్గురువు ద్వారా అభ్యసిస్తే అది పరిపూర్ణం అవుతుంది. ఆధ్యాత్మ విద్య.. ఆచరణాత్మకమైన విద్య. దానిని గురు ముఖంగా నేర్చుకుంటేనే సఫలీకృతులు అవుతారు.
(అగ్రే సారితం)

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गुरु के द्वारा ही सीखना चाहिए

    किसी नगर में छोटी नौकरी करने वाला कोई रहता था। उसका विवाह हो गया। जब उसकी पत्नी घर आई तो यह पता चला कि उसे खाना बनाने का ज्ञान नहीं था। और वह (स्वयं) भी खाना बनाना नहीं जानता था। क्या करें, कुछ पता नहीं चला। अतः दोनों भोजनालय से खाना लेकर आने लगे। कुछ दिन बीते। भोजन के लिए बहुत खर्चा हो रहा था। अतः यह निश्चय कर लिया कि कैसे भी खाना बनाना सीखना ही है। ‘खाना कैसे बनाए’ यह पुस्तक ले आए और दोनों ने अच्छे से पढ़ा। एक शुभ दिन देख कर घर में खाना बनाना प्रारंभ किया। ‘पहले चावल बनाएंगे’ यह सोचकर पुस्तक देख लिया। उसमें लिखा था- ‘थाली में दो गिलास चावल लेकर उससे दुगना पानी डालकर चूल्हे पर रखना है।’ उन्होंने ऐसा ही किया। आधा घंटा बीत गया। पर खाना नहीं पका। एक घंटा बीत गया एक भी दाना नहीं पका। पुस्तक में जैसा लिखा था वैसा ही किया। फिर भी क्या समस्या है- दोनों को यह पता नहीं चला।
    तब कोई उसका कोई सहकर्मचारी घर आया। पति पत्नी के लटके मुख देखकर विषय जानकर पाकगृह में गया और देखा कि चूल्हे के ऊपर थाली, उसमे चावल, और उसमें पानी- सब तो ठीक था। पर चूल्हे को उन लोगों ने जलाया नहीं था। उसने पूछा- ‘आग के बिना खाना कैसे बनता? चावल कैसे पकता?’ उस उन दोनों ने कहा कि ‘वह तो पुस्तक में नहीं है।’ ‘पुस्तक में नहीं है, इस कारण से क्या सामान्य ज्ञान भी भूल जायेंगे? ठीक है। पुस्तक को छोड़ो। किसी अनुभवी व्यक्ति के पास जाकर खाना बनाना सीख लो। आचरण के साथ ही प्रयोग अच्छी तरह जान सकते हैं।’ ऐसा कहकर वह चला गया।
    सामान्य ज्ञान के विषय में गुरु की आवश्यकता इतनी है तो सूक्ष्म आध्यात्मिक विद्या के लिए गुरु के स्थान के विषय में क्या कहना? ग्रंथों को पढ़ने मात्र से आध्यात्मिक ज्ञान नहीं सिद्ध होता। वहां विषय परिज्ञान सदगुरुओं के द्वारा जानकर ही परिपूर्णता को प्राप्त होता है। आध्यात्मिक विद्या आचरण विद्या है। गुरु की प्राप्ति से ही वह सफल होता है॥

[वाट्साप से प्राप्त किसी सन्देश का हिन्दी अनुवाद]

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