Wednesday 12 September 2018

अनूक्तम्-४ किं भगवान् अस्माभिः अर्पितं नैवेद्यं खादति?

किं भगवान् अस्माभिः अर्पितं नैवेद्यं खादति?
(अनूदितलेखः)

    “किं भगवान् अस्माभिः अर्पितं नैवेद्यं खादति? यदि भक्षयति तर्हि तद् वस्तु कुतः शिष्यते?” कश्चित् बालः गुरुमेवमपृच्छत्। गुरुः किमपि समाधानं न दत्तवान्। पाठं पाठयन् स्थितः। तस्मिन् दिने पाठे कञ्चन श्लोकं अशिक्षयत्।
        पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
        पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ इति।
    पाठे पूर्णे सति सर्वान् अवदत्- पुस्तकं दृष्ट्वा श्लोकं कण्ठस्थं कुर्वन्त्विति।
    कञ्चित् कालं पश्चात् यः प्रश्नं कृतवान् तं शिष्यम् अभिगम्य अपृच्छत्- किं श्लोकः कण्ठस्थ उत नेति। तदा स शिष्यः अशेषं श्लोकं निर्दुष्टम् अश्रावयत्। तथापि गुरुः शिरं नेति अचालयत्। ततः शिष्यः अवोचत्- “यदीष्यते पुस्तकं पश्यतु आर्य। श्लोकः साधुरेव।” तदा गुरुः अशंसत्- “अरे, श्लोकस्तु पुस्तके एवास्ति। तर्हि त्वया कथं गृहीतः?” अथ शिष्यः किमपि वक्तुं नापारयत्।
    गुरुः अभणत्- “पुस्तके यः श्लोकः अस्ति सः स्थूलस्थितौ अस्ति। त्वं यदा अपठः तदा सः सूक्ष्मस्थितौ अन्तः प्राविशत्। तस्यामेव स्थितौ तव मनः भवति। एतेन न अलं, त्वं यदा एनं पठित्वा कण्ठस्थं करोषि, तदा पुस्तके स्थूलस्थितौ स्थितः श्लोकः ह्रासं न एति। एवमेव  पूर्णे विश्वे व्याप्तः परिपूर्णः परमात्मा अस्माभिः समर्पितं नैवेद्यं सूक्ष्मस्थितौ गृह्णाति। स्थूलरूपे वस्तुनि कोऽपि ह्रासः न भवति। तदेव वयं प्रसादरूपेण स्वीकुर्मः।”
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क्या भगवान हमारे द्वारा चढाया गया नैवेद्य (भोग) खाते हैं?

    “क्या भगवान हमारे द्वारा चढाया गया भोग खाते हैं? यदि खाते हैं तो वह वस्तु खत्म क्यों नहीं हो गई?” एक लड़के ने अपने गुरु से ऐसा प्रश्न किया। गुरु ने कुछ समाधान नहीं दिया। पाठ पढ़ाते रहे। उसदिन पाठ में एक श्लोक सिखाया।
        पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
        पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ -
    पाठ पूरा होने पर सभी को कहा कि पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ करलें।
    थोड़ी देर बाद प्रश्न करने वाले शिष्य के पास जाकर पूछा कि श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं। तब उस शिष्य ने पूरा श्लोक सही सही सुना दिया। फिर भी गुरु ने सर नहीं में हिलाया। तो शिष्य ने कहा कि- “चाहे तो पुस्तक देख लें। श्लोक सही है।” तो गुरु ने कहा-“अरे श्लोक तो पुस्तक में ही है। तो तुम्हें कैसे आ गया?” तो शिष्य कुछ कह नहीं पाया।
    गुरु ने कहा- “पुस्तक में जो श्लोक है वह स्थूल स्थिति में है। तुम ने जब पढ़ा तो वह सूक्ष्म स्थिति में अंदर प्रवेश कर गया। उसी स्थिति में तुम्हारा मन रहता है। इतना ही नहीं, तुम जब इसको पढ़कर कंठस्थ करते हो, तो पुस्तक में जो स्थूल स्थिति का श्लोक है उसमें कोई कमी नहीं आई। इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परिपूर्ण परमात्मा हमें हमारे द्वारा चढाये गये निवेदन को सूक्ष्म स्थिति में ग्रहण करते हैं। स्थूल रूप के वस्तु में कोई ह्रास नहीं होता। उसी को हम प्रसाद के रूप में लेते हैं।”

[वाट्साप से प्राप्त किसी सन्देश का हिन्दी अनुवाद]
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దేవుడు మనం పెట్టిన నైవేద్యం తింటాడా?

“దేవుడు మనం పెట్టిన నైవేద్యం తింటాడా? తింటే పెట్టిన పదార్థం ఎందుకు అయిపోలేదు” అని ప్రశ్నించాడు ఒక పిల్లవాడి కి సందేహం వచ్చి, గురువు గారిని. గురువుగారు ఏం సమాధానం ఇవ్వకుండా, పాఠాలు చెప్పసాగారు.
ఆరోజు పాఠంలో ఒక శ్లోకం చెప్పారు-
        “ఓం పూర్ణమద: పూర్ణమిదం పూర్ణాత్ పూర్ణముదచ్యతే
        పూర్ణస్య పూర్ణమాదాయ పూర్ణమేవావశిష్యతే” .
    పాఠం చెప్పడం పూర్తయిన తరువాత, అందరిని పుస్తకం చూసి శ్లోకాన్ని నోటికి నేర్చుకొమ్మని చెప్పారు గురువు గారు.
    కొద్దిసేపటి తరువాత, నైవేద్యం గూర్చి ప్రశ్నించిన శిష్యుడి దగ్గరకు వెళ్ళి నేర్చుకున్నావా? అని అడిగారు. నేర్చుకున్నాను అని వెంటనే అంతా సరిగ్గా అప్పచెప్పాడు శిష్యుడు. గురువు గారు తల అడ్డంగా ఆడించారు. దానికి ప్రతిగా శిష్యుడు, “కావాలంటే పుస్తకం చూడండి. అంతా సరిగ్గానే ఉంది.” అని గురువు గారికి పుస్తకం తెరచి చూపించాడు. “శ్లోకం పుస్తకం లోనే ఉందిగా. నీకు శ్లోకం ఎలా వచ్చింది?” అని అడిగారు గురువుగారు. శిష్యుడికి ఏం చెప్పాలో అర్థం కాలేదు.
    గురువు గారే మళ్ళీ అన్నారు. “పుస్తకంలో ఉండే శ్లోకం స్థూల స్థితి లో ఉంది. నువ్వు చదివినప్పుడు నీ బుర్రలోకి అది సూక్ష్మ స్థితిలో ప్రవేశించింది. అదే స్థితి లో నీ మనస్సులో ఉంది. అంతే కాదు, నువ్వు చదివి నేర్చుకోవడం వల్ల పుస్తకంలో స్థూల స్థితిలో ఉన్న శ్లోకానికి ఎటువంటి తరుగూ జరగలేదు. అదే విధంగా విశ్వమంతా వ్యాప్తి అయి పూర్ణంగా ఉన్న పరమాత్ముడు నైవేద్యాన్ని సూక్ష్మస్థితిలో గ్రహించి, స్థూలరూపం లో ఎటువంటి నష్టం లేకుండా చేస్తాడు. దాన్నే మనం ప్రసాదం గా తీసుకుంటున్నాం.” అని వివరణ చేశారు.
(--అగ్రేషితం)

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