Friday 2 August 2019

अनूक्तम्-२७ गोः मातृवत्सलता

अनूक्तम्-२७ 🐄 गोः मातृवत्सलता 💝
(अनुवादलेखः)

    एकदा मध्यप्रदेशे इन्दौरनगरे कस्मिंश्चित् पथि ‘महाराज्ञ्याः अहिल्याबाई-होल्करस्याः पुत्रस्य मालोजीरावस्य’ रथः निरगच्छत्। ततः तस्य मार्गे सद्यो जातः गोवत्सः पुरः आगच्छत् ।
    गौः स्ववत्सं रक्षितुम् अधावत्, किन्तु तदन्तरे मालोजीरावस्य रथः गोः वत्सं निर्दल्य अग्रे अयात्। कोऽपि तस्य वत्सस्य चिन्तां नाकरोत्। गौः वत्सस्य मरणेन स्तब्धः, आहतश्च तस्यैव देहस्य समीपे मार्गे एव उपाविशत्।
    कञ्चित् कालं पश्चाद् अहिल्याबाई तस्मात् मार्गात् निरगच्छत्। अहिल्याबाई गावं, तस्य पार्श्वे पतितं च मृतं वत्सं दृष्ट्वा घटनाक्रमम् अजानात्।
    समस्तघटनाक्रमं ज्ञात्वा अहिल्याबाई सभायां मालोजीरावस्य पत्नीं मेनाबाईम् अपृच्छत्— “यदि कोऽपि नरः कस्याश्चित् मातुः पुरतः तस्य पुत्रं हन्यात्, तर्हि तस्य कः दण्डः भवेत्?”
    मालोजीरावस्य भार्या प्रत्यवदत्— “सः मृत्यदण्डभाग् भवेत्।”
    देवी अहिल्याबाई मालोरावस्य हस्तौ पादौ च बध्वा मार्गे पातयितुमवदत्, ततः सा एवमादिशत्- ‘मालोजी रथेन आहतः मृत्युदण्डं प्राप्नुयात्’ इति। इदं कार्यं कर्तुं कोऽपि संसिद्धः नाभवत्।
    देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिया राज्ञी। अतः सा स्वयमेव माता सती अपि इदं कार्यं कर्तुं रथमरोहत।
    सा रथं सञ्चाल्य अग्रे गता तदा काचित् अप्रत्याशिता घटना अघटत। सा एव गौः पुनः रथस्याग्रे आगत्य अतिष्ठत्। असकृत् निवारितापि सा पुनः अहिल्याबाईराज्ञ्याः रथस्य पुरतः एवागत्य तिष्ठति स्म।
    इदं दृश्यं विलोक्य मन्त्रीपरिषद् देवीम् अहिल्याबाईम् प्रार्थयत्- ‘मालोजीरावं क्षमां करोतु’ इति। अस्य आधारः गोः व्यवहारः अभवत्।
    एवं गौः स्वयं पीडिता अपि मालोजीरावं द्रौपदीव क्षान्त्वा जीवनं ररक्ष।
    इन्दौरनगरे यत्र घटना इयमभवत्, तत् स्थानम् अधुनापि ‘गोः मध्ये (आड़ा) आगता’ इति कारणेन ‘आड़ा बाजार’ इति नाम्ना ज्ञायते।
    तस्मिन्नेव स्थाने गौः मध्ये आगत्य अन्यम् अरक्षत्- ‘अक्रोधेन क्रोधं, प्रेम्णा द्वेषभावं, क्षमया च प्रतिशोधभावनां च शान्तव्यमिति’।
    भारतीयऋषयः वृथैव गावं मातेति न कथयन्ति, अत्र गोः ममत्वपूर्णः व्यवहारः, मानवजीवने, कृष्यां च गोः उपयोगिता च आधारभूतं कारणमस्ति।
    गौसंवर्धनं करणीयम्। भारतीयस्येदं संवैधानिकं कर्तव्यम् अपि भवति।

--उषाराणी सङ्का
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एक बार मध्यप्रदेश के इन्दौर नगर में एक रास्ते से ‘महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर के पुत्र मालोजीराव’ का रथ निकला तो उनके रास्ते में हाल ही की जनी गाय का एक बछड़ा सामने आ गया।
    गाय अपने बछड़े को बचाने दौड़ी तब तक मालोरावजी का ‘रथ गाय के बछड़े को कुचलता’ हुआ आगे बढ़ गया।
    किसी ने उस बछड़े की परवाह नहीं की। गाय बछड़े के निधन से स्तब्ध व आहत होकर बछड़े के पास ही सड़क पर बैठ गई।
    थोड़ी देर बाद अहिल्याबाई वहाँ से गुजरीं। अहिल्याबाई ने गाय को और उसके पास पड़े मृत बछड़े को देखकर घटनाक्रम के बारे में पता किया।
    सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनाबाई से पूछा-
    यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने ही उसके बेटे की हत्या कर दे, तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए?
    मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया- उसे प्राण दंड मिलना चाहिए।
    देवी अहिल्याबाई ने मालोराव को हाथ-पैर बाँध कर मार्ग पर डालने के लिए कहा और फिर उन्होंने आदेश दिया मालोजी को मृत्यु दंड रथ से टकराकर दिया जाए। यह कार्य कोई भी सारथी करने को तैयार न था।
    देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थी। अत: वे स्वयं ही माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए भी रथ पर सवार हो गईं।
    वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी।
    वही गाय फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गई, उसे जितनी बार हटाया जाता उतनी बार पुन: अहिल्याबाई के रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती।
    यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद् ने देवी अहिल्याबाई से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की, जिसका आधार उस गाय का व्यवहार बना।
    उस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को द्रौपदी की तरह क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की।
    इन्दौर में जिस जगह यह घटना घटी थी, वह स्थान आज भी गाय के आड़ा होने के कारण ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जाना जाता है।
    उसी स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की थी। ‘अक्रोध से क्रोध को, प्रेम से घृणा का और क्षमा से प्रतिशोध की भावना का शमन होता है’।
    भारतीय ऋषियों ने यूँ ही गाय को माँ नहीं कहा है, बल्कि इसके पीछे गाय का ममत्वपूर्ण व्यवहार, मानव जीवन में, कृषि में गाय की उपयोगिता बड़ा आधारभूत कारण है।
    गौसंवर्धन करना हर भारतीय का संवैधानिक कर्तव्य भी है।

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 ఆవు మాతృవాత్సల్యం

ఒకసారి మధ్యప్రదేశ్ లో ఇందోర్ నగరంలో ఒక వీథిలో మహారాణి అహల్యా బాయి హోల్కర్ కొడుకు మాలోజీ రావు రథం వెళుతుండగా అతడి మార్గమధ్యంలోకి అప్పుడే పుట్టిన ఆవుదూడ వచ్చింది. ఆవు తన దూడను రక్షించుకోవటానికి పరిగెత్తేలోపలే మాలోజీరావు రథం ఆవు దూడను చక్రాల కింద నలిపేస్తూ ముందుకు వెళ్లి పోయింది. ఎవరూ దూడ గురించి పట్టించుకోలేదు. తన దూడ చనిపోవటంతో ఆవు స్తబ్ధమైపోయి బాధతో దారిలో దూడ పక్కనే కూర్చుండిపోయింది.
    కొంతసేపటి తర్వాత అక్కడి నుంచి అహల్యా బాయి రథం వెళ్ళింది. అహల్యా బాయి ఆవును, దాని దగ్గర చనిపోయి పడి ఉన్న దూడను చూసి జరిగిందంతా తెలుసుకుంది. మొత్తం ఘటన అంతా తెలుసుకుని అహల్యాబాయి సభలో మాలోజీ భార్య మేనాబాయిని పిలిచి అడిగింది- “ఒకవేళ ఎవరన్నా తల్లి ఎదుట తన కొడుకును హత్య చేస్తే అతడికి ఏమి శిక్ష పడాలి?” అని. మాలోజీభార్య జవాబిచ్చింది- “అతడికి ప్రాణ దండం శిక్ష”. అహల్యాబాయి మాలోజీ కాళ్లు చేతులు కట్టేసి, అతడిని రథం కిందపడేసి, ప్రాణ దండం విధించమని ఆజ్ఞాపించింది. ఈ పని చేయటానికి ఎవరూ సారథి ముందుకు రాలేదు.
    అహల్యాబయి న్యాయాన్ని ప్రేమించే రాణి. అందువల్ల ఆమె స్వయంగా తల్లి అయి ఉండి కూడా ఈ పని చేయటానికి రథం ఎక్కి కూర్చుంది. రథాన్ని తీసుకుని ముందుకు నడిపించగానే ఒక అనుకోని సంఘటన జరిగింది. అదే ఆవు రథం ఎదుట వచ్చి నిలబడింది. దానిని ఎన్నిసార్లు తొలగించినా అది మళ్ళీ మళ్ళీ అహల్యాబాయి రథం ఎదుటే నిలబడింది. ఈ దృశ్యం చూసి మంత్రి పరిషత్తు అహల్యాబాయితో మాలోజీని క్షమించమని ప్రార్ధించారు. దీని ఆధారం ఆ ఆవు యొక్క వ్యవహారమే.
    ఈ విధంగా ఆవు తాను బాధ పడినప్పటికీ మాలోజీని ద్రౌపది వలె క్షమించింది. అతడి జీవితాన్ని రక్షించింది. ఇందోర్ లో ఏ స్థానంలో ఈ సంఘటన జరిగిందో ఆ స్థానం ఇప్పటికీ ఆవు మధ్యలో (అడ్డు=ఆడా) రావటం వల్ల ‘ఆడా బజార్’ అనే పేరుతో పిలువబడుతుంది. ఆ చోట ఆవు మధ్యలోకి వచ్చి ఇతరులను రక్షించింది. అక్రోధంతో క్రోధాన్ని, ప్రేమతో ద్వేషాన్ని, క్షమతో పగను శాంతింప చేయాలి.
    భారతీయ ఋషులు ఉత్తగనే అవును తల్లి అనలేదు. దీని వెనక ఆవు వ్యవహారము మానవజీవితంలో వ్యవసాయంలో ఆవు ఉపయోగపడటం- ఎంతో ఆధారభూతమైన కారణం. గోవును సంవత్సర రక్షించటం భారతీయుల సంవిధాన కర్తవ్యం కూడా.

[వాట్సాప్ లో వచ్చిన ఓ లేఖకు తెలుగు అనువాదం]

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