Friday 2 August 2019

अनूक्तम्-२६ सच्छीलः कोषाधिकारी

अनूक्तम्-२६ सच्छीलः कोषाधिकारी

    पूर्वं कस्यचित् राज्ञः आस्थाने कोशाधिकारिणः पदवी रिक्ता जाता। तदर्थम् अभ्यर्थिनः आहूताः। बहवः अभ्यर्थिनः आगताः। अनेकाः परीक्षाः विहिताः। अन्ते त्रयः अवशिष्टाः। भूपालः बहुधा विचिन्त्य तेभ्यः एकैकं सञ्चिकां दत्त्वा एवमाज्ञप्तवान्—“वनं गत्वा लब्धैः फलैः सञ्चिकां सम्पूर्य सायङ्कालात् पूर्वमागच्छन्तु।” इति।
    तेषु प्रथमः "नृपालः फलान्याहर्तुं वदति। कोऽपि विशेषः अवश्यं भवेत्। अतः प्रशस्यफलानि एव आहरेयम्।" इति विचार्य वनं सर्वं सञ्चर्य, श्रान्तिमविगणय्य रम्याणि, नानाविधानि भद्राणि च फलानि गृहीत्वा सञ्चिकां पूर्णवान्।
    द्वितीयः "महीशस्य फलैः किम्? तस्य उपवने बहूनि फलानि भवेयुः। अस्माभिरानीतैः फलैः तस्य किं वा प्रयोजनं सिध्येत्? अतः सञ्चिकां परिपूरयामि, अलमनेन।" इति भावयित्वा यानि फलानि यत्र दृष्टानि तैः पक्वापक्वैः, साधुभिरसाधुभिश्च फलैः निश्शेषं प्रपूर्णवान्।
    अथ तृतीयः बहु चतुरतया एवमचिन्तयत्-- "पृथ्वीपतिः मयानीतैः फलैः किं वा करिष्यति? तस्य अनेकानि कार्याणि भवेयुः, सञ्चिकाम् अशेषं द्रष्टुं समयोऽपि न भवेत्। तर्हि किं वने सर्वत्र भ्रमणेन कष्टेन च?" इति। अतः सः सञ्चिकां त्रिपादभागं पत्रैः पूरयित्वा अवशिष्टं फलैरापूर्णवान्।
    सायङ्कालात् पूर्वं त्रयोपि सञ्चिकानि स्वीकृत्य नृपतिमुपागच्छन्। यथा तृतीयः व्यचिन्तयत् तथा भूपः सञ्चिकानि सकृदपि न दृष्टवान्। भटानाहूय अवदत् च-- "एतान् त्रयान् भिन्नेषु कोष्ठेषु स्थापयन्तु। मासकालं यावत् स्वस्वसञ्चिकापूर्णफलैः सह वासयन्तु। भक्षणाय किमपि न प्रददतु। ते यानि फलानि आहूतवन्तः तान्येव तेषामाहारः भवेत्।” इति। राजाज्ञामनुसृत्य त्रयोऽपि पृथक्कोष्ठेषु उपस्थापिताः।
    प्रथमः यानि साधूनि फलानि आहृतवान्, तैः मासपर्यन्तं सुखमवसत्। तस्य क्षुत्पीडा न अभवत्।
    द्वितीयः यानि कानिचन साधूनि फलान्यानीतवान्, तैः कतिपयदिनानि यावत् जीवितवान्, पुनः असाधूनि फलानि खादित्वा अस्वस्थो जातः।
    अथ तृतीयः कानिचन एव फलानि चितवान् किल। तानि सप्ताहं यावत् खादितवान्। ततश्च सः सञ्चिकायां यानि पत्राणि आसन् तानि अत्तुं न शक्नोति ननु। बुभुक्षया पीडितः सन् अत्यन्तं शक्तिहीनः स सञ्जातः।
    मासकालं पश्चात् नृपः तान् आहूय एवमुवाच--“राजास्थाने वृत्तये नीतिमान् आवश्यकः।” इति उक्त्वा प्रथमं कोशाधिकारिरूपेण नियुक्तवान्॥
    शिक्षा— १. अस्माभिः आचर्याणि कार्याणि यदा कोपि न पर्यवेक्षते, तदापि श्रद्धया साधुरूपेणैव कार्याणि।
    २. सत्यशीलतया कार्याणि कुर्मः, तदा प्रतिफलमवश्यं लभेत्।

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నిజాయితీపరుడైన కోశాధికారి
    పూర్వం ఒక రాజు ఆస్థానంలో కోశాధికారి పదవికి ఖాళీ ఏర్పడింది. దానికోసం అభ్యర్థులను ఆహ్వానించారు. చాలామంది అభ్యర్థులు వచ్చారు. అనేక పరిక్షలు జరిగాయి. తుదకు ముగ్గురు మిగిలారు. రాజుగారు బాగా అలోచించి, వారికి ఒక్కొక్క ఖాళీ సంచీ ఇచ్చి ఇట్లా అజ్ఞాపించాడు- “అడవిలోకి వెళ్ళి మీకు దొరికిన పండ్లతో సంచీని నింపి సాయంత్రంలోపు రావలసింది.” అని.
    వారిలో మొదటివాడు "రాజుగారు పండ్లు తెమ్మంటున్నారు. ఏదో విశేషం ఉండే ఉంటుంది. కనుక మంచి పండ్లను మాత్రమే తీసుకువెళ్ళాలి." అనుకోని అడవి అంతా కలియతిరిగి శ్రమ లెక్కించకుండా నాణ్యమైన, వివిధ రకాల పండ్లను కస్టపడి ఏరి, సంచీని నింపాడు.
    రెండవవాడు, "రాజుగారికి పండ్లెందుకు? ఆయన ఉద్యానంలో బోలెడు పండ్లుంటాయి. మేము తెచ్చే పండ్లతో ఆయనకేం అవసరం తీరుతుంది? కావున సంచీని నింపితే చాలు" అనుకొని ఎక్కడ కనిపించిన పండ్లను అక్కడ పండినవి, , పండనివి, మంచివి, పుచ్చువి అని చూడకుండా సంచీని నింపాడు.
    ఇక మూడవవాడు చాలా చతురంగా ఆలోచించాడు- "రాజుగారికి నేను తెచ్చే పండ్లతో పనేముంది? వారికి అనేక పనులుండవచ్చు. సంచీ మొత్తం చూసే తీరిక కూడా ఉండదు. అలాంటప్పుడు కష్టపడి అడవి అంతా తిరిగాల్సిన పనేంటి?" అందువల్ల అతడు ఆకులు అలుములతో ముప్పావు సంచీని నింపి మిగతా భాగాన్ని పండ్లతో నింపేశాడు.
    సాయంత్రనికంటే ముందే ముగ్గురూ తమ సంచులు తీసుకొని రాజుగారి దగ్గరకు వెళ్ళారు. మూడవవాడు ఊహించినట్లే రాజుగారు సంచుల వంక కనీసం చూడనైనా చూడకుండా భటులను పిలిచి ఇట్లా ఆజ్ఞాపించాడు- "ఈ ముగ్గరిని విడివిడిగా మూడు గదులలో పెట్టండి. నెల రోజులుపాటు వారు తెచ్చిన పండ్ల బస్తాలతో ఉంచండి. తినడానికి ఏమి ఇవ్వకండి. వారు తెచ్చిన పండ్లే వారికీ ఆహారం.” రాజుగారి ఆదేశానుసారం ముగ్గురూ మూడు గదుల్లో ఉంచబడ్డారు.
    మొదటివాడు ఏ నాణ్యమైన పండ్లను తెచ్చాడో, వాటితో నెలరోజులు హాయిగా గడిపేశాడు.
    రెండవవాడు తాను ఏ కొన్ని మంచి పండ్లను తెచ్చుకున్నాడో వాటితో కొన్నిరోజులు వరకు జీవించాడు. తర్వాత మిగిలిన పుచ్చిన పండ్లను తిని తీవ్ర అస్వస్థతకు లోనయ్యాడు .
    ఇక మూడవవాడు కొన్నే పండ్లను తెచ్చాడు కదా. ఆ పండ్లను వారం రోజులు పాటు తిన్నాడు. ఆ పై సంచిలో ఉన్న ఆకులు అలుములు తినలేడు కదా. ఆకలితో బాగా చిక్కి శక్తిహీనుడైపోయాడు.
    నెలరోజులు తరువాత రాజుగారు వారిని పిలిచి, ఇట్లా అన్నాడు- “రాజాస్థానంలో ఉద్యోగానికి కావలసింది నిజాయతిపరుడు" అని చెప్పి, మొదటి వ్యక్తిని కోశాధికారిగా నియమించాడు.
    నీతి- 1. మనం చేసే పనిని ఎవరూ పర్యవేక్షించక పోయినా శ్రద్ధతో సరిగ్గానే చేయాలి.
        2. నిజాయతీతో పనిచేస్తే సత్ఫలితం తప్పకుండా లభిస్తుంది.
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विश्वासपात्र कोषाधिकारी
    पहले कभी किसी राजा के आस्थान में कोषाधिकारी का पद रिक्त हो गया। उसके लिए अभ्यर्थी बुलाए गए। बहुत लोग आए। बहुत सारी परीक्षाएं ली गई। अंत में तीन बच गए। राजा बहुत सोच-विचार कर उनको एक एक झोली दी और यह कहा- “वन में जाकर जो फल मिले उनसे इस झोली को भर कर शाम से पहले आ जाओ।”
    उनमें से पहला वाला यह सोचने लगा- “राजा फलों को लाने को कह रहा है। कोई विशेष बात अवश्य होगी। इसलिए बहुत ही अच्छे फल ले आता हूं।” ऐसा विचार कर उसने पूरे वन में घूम घूम कर, अपनी थकावट को भी नहीं देकते हुए, नाना प्रकार के मीठे व अच्छे फल लेकर झोली को भरलिया।
    दूसरा यह सोचा कि “राजा का फलों से क्या काम? उसके उपवन में बहुत फल होंगे। हमारे द्वारा लाए गए फलों से उसका कैसा प्रयोजन सिद्ध होगा? अतः बस, झोली को भरता हूँ। इतना काफी है।” ऐसा सोचकर वह जहां जहां जैसे भाई देख लिए, कच्चे पक्के, अच्छे बुरे, सारे फलों से झोली को पूरी तरह भर दिया।
    अब तीसरा वाला बहुत चतुराई से इस प्रकार सोचा- “राजा मेरे द्वारा लाए गए फलों से क्या करेगा? उसको बहुत सारे काम होंगे। झोली को पूरी तरह देखने के लिए समय भी नही होगा। तो मैं हर जगह घूम कर कष्ट क्यों सहूं?” ऐसा सोचकर वह झोली के पौन भाग पत्तों से भरदिया। और बाकी फलों से भर दिया।
    शाम से पहले तीनों झोलियों को लेकर राजा के पास गए। जिस प्रकार तीसरे ने सोचा था, वैसे ही राजा ने झोलयों को एक बार भी नहीं देखा। और उसने भटों को बुलाया और कहा- “इन तीनों को तीन अलग कमरों में रख दो। एक मास तक अपने अपने झोलियों में जो फल है उन्हीं से इनको रहने दो। खाने के लिए कुछ भी नहीं देना। वे लोग जो फल लाए वही उनका आहार है।” राजा की आज्ञा के अनुसार तीनों अलग-अलग कमरों में रखे गए।
    पहला जो सारे अच्छे फल लाया, उनके द्वारा एक मास पर्यंत सुख से रह लिया। उसको भूख नहीं लगी।
    दूसरा वाला जितने अच्छे फल लाया उनसे कुछ दिन गुजार लिया पर बाद में बुरे फल खाकर अस्वस्थ हो गया।
    अब तीसरा कुछ ही फल लाया था ना? तो वह एक सप्ताह पर्यंत उनको खाया। झोली में जो पत्ते थे उनको तो खा नहीं सकता था। भूख से पीड़ित होकर वह बहुत शक्ति हीन हो गया।
    एक मास के पश्चात राजा ने उनको बुलाया और कहा- “राजास्थान में नीति युक्त व्यक्ति की आवश्यकता है।” ऐसा कहकर पहले वाले को कोषाधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया।
    सीख- १. चाहे हमारे द्वारा आचरण होने वाले कार्य कोई भी नहीं देखता हो, फिर भी श्रद्धा से सही ही कार्य करना चाहिए।
    २. सत्यशीलता से कार्य करेंगे तब उसका प्रतिफल अवश्य मिलेगा।

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