Wednesday 1 September 2021

॥सर्वस्वं तस्य पुस्तकम्॥ उसका सर्वस्व पुस्तक ही है

नमस्ते

 अखिलभारतसंस्कृतकविसम्मेलनम् के अन्तर्गत पढी हुई मेरी कविता मेरे द्वारा किये गये हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत है।

॥सर्वस्वं तस्य पुस्तकम्॥ उसका सर्वस्व पुस्तक ही है
 

पुस्तकपठनं, तत्प्रयोजनानि
पुस्तक पढ़नेवाला एवं उसके प्रयोजन व लाभ
प्रथमस्तावत् तदनुबद्ध-पुस्तकपठितृ-लक्षणविचारः
पहले उसके लक्षणों का विचार


मौनी ग्रन्थैकदृष्टिश्च सदा प्रणतमस्तकः।
आत्मारामः स एकाकी स्वाध्यायनिरतस्सदा॥1
वह मौन रहता है। केवल पुस्तक पर उसकी दृष्टि रहती है। सदैव उसका सर झुका रहता है। वह अपने आप में आनंदित रहता है। अकेले अध्ययन करता रहता है।

नित्यस्वान्तमयत्वं च बाह्यलोकस्य विस्मृतिः।
पुस्तके प्रीतिभावश्च ममत्वं परमोन्नतम्॥2
हमेशा अपने ही अंदर समाया रहता है। बाहर के दुनिया को भूल जाता है। पुस्तक में उसकी बहुत प्रीति रहती है। और अपनापन अत्यधिक रहता है।


परमव्याकुलीभावः क्षणकालव्ययेन वा।
पुस्तकाध्ययने नन्देत् रिक्तहस्तः स खिद्यते॥3
बहुत ही व्याकुल हो जाता है जब एक पल भी व्यर्थ होता है। पुस्तक अध्ययन में आनंदित रहता है। ‌ और जब उसके हाथ पुस्तक के बिना खाली रहते हैं तो बड़ा दुखी होता है।

शान्तस्थानाय चान्विष्येत् गम्भीरवदनः सदा।
अनुकूलौ देशकालौ मार्गयन् भ्रमतीह वै॥4
बहुत गंभीर मुख होकर शांतस्थान के लिये अन्वेषण करता रहता है। अनुकूल प्रदेश और समय के लिए ढूंढता हुआ यहां वहां फिरता रहता है।

प्रातः सायं च मध्याह्नं चक्षुषी तस्य पुस्तके।
शब्दाश्वारोहके भूत्वा ते च तस्मिन् हि धावतः॥5
सुबह शाम और दोपहर को उसकी आंखें पुस्तक पर ही टिकी रहती हैं। शब्द नाम के घोड़े पर चढ़कर उन्हीं पर (उसकी आंखें) दौड़ती रहती हैं।

गेहे कार्यालये याने नदीतीरे वने रणे।
गच्छन् स्वपन् श्वसन् खादन् तिष्ठन्नुपविशन्नपि ॥6
घर में, कार्यालय में, गाड़ी में, नदी के किनारे, जंगल में, युद्ध में, जाते हुए, सोते हुए, श्वास लेते हुए, खाते हुए, खड़े होकर बैठ कर भी..

आतपः शीतता वृष्टिर्हिमपातोपि वा भवेत्।
दम्भोलिर्पततान्नाम पुस्तकैके हि मस्तकम् ॥7
गर्मी हो या ठंड, बारिश हो या हिमपात, चाहे बिजली ही क्यों ना गिरे, उसका सर पुस्तक में ही रहता है।

मुद्रितं स्पर्शयोग्यं वा ऐपाड् वा किन्डलेव वा।
यत्किञ्चिदपि तद्भूयात् केवलं पुस्तकं भवेत्॥8
चाहे वह छूने लायक मुद्रित पुस्तक हो, या आईपैड या किंडल हो, जो कुछ भी हो बस वह पुस्तक हो।

पुस्तकं मन्यते श्रेष्ठं पत्न्या अपि धनादपि ।
मित्रबान्धवपुत्राश्च कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥9
पुस्तक को पत्नी से भी, धन से भी श्रेष्ठ मानता है। मित्र बंधु बच्चे उसकी रत्ती भर भी समानता नहीं पाते हैं।

पुस्तकं मम हस्तेस्तु पुस्तकं पूजये मुदा।
पुस्तकेनैव जागर्मि पुस्तकायैव जीवनम्॥10
पुस्तकादेव मत्प्राणाः पुस्तकस्यातिराधकः।(fan अतिराधकः)
पुस्तके मस्तकं मेस्तु त्वमेवाहं हि पुस्तक ॥11
इति स्तोत्रं ह्यनुनित्यं पठति श्रद्धयान्वितः।
प्राणेपि च गतप्राये ग्रन्थं संस्पृश्य जीवति ॥12
पुस्तक मेरे हाथ में हो। मैं पुस्तक को आनंदित होकर पूजन करता हूं। पुस्तक के साथ ही (नींद से) उठता हूं। पुस्तक के लिए ही जीता हूं। पुस्तक से ही मेरे प्राण चलते हैं। पुस्तक का मैं बहुत बड़ा आराधक (fanatic)हूं। पुस्तक में ही मेरा मस्तक रहे। हे पुस्तक तुम ही मैं हूं।
ऐसा स्तोत्र वह सदैव श्रद्धा युक्त होकर पड़ता है। उसके प्राण निकलने वाले होते हुए भी पुस्तक को छूकर वाह जी लेता है।

शब्दा भावा हि संसारः वाक्यान्येव हि विश्वकृत्।
पदेनार्थाः पदेभ्योर्थः पदार्थाभ्यां स जीवति॥13
शब्द भाव उसका संसार है। वाक्य की उसके लिए ब्रह्मा है। एक पद से अनेक अर्थ, अनेक पदों से एक अर्थ, पद और अर्थ के द्वारा ही वह जीवित रहता है।

मन्यते पुस्तकं स्वस्य ह्येकैकं सुहृदम्महत्।
पुस्तके च पुनः प्राप्ते क्व चान्नं क्व च वै रसः॥14
एक पुस्तक को ही अपना अकेला महान मित्र समझता है। पुस्तक एक बार मिल जाए तो क्या अन्न और कहाँ पानी?

यावन्तः सन्ति विश्वेस्मिन् ग्रन्थागाराः सुदुर्लभाः।
वाञ्छत्ययं तु सर्वत्र निरङ्कुशसदस्यताम् ॥15
इस संसार में जितने भी दुर्लभ से दुर्लभ ग्रंथालय हो, वह उन सब में निरंकुश सदस्यता को चाहता है।

अधुना पठितुः गार्ह-सामाज-आध्यात्मिक-प्रयोजनानि
अभी हम पढ़ने वाले के घर से संबंधित सामाजिक आध्यात्मिक प्रयोजनों को देखेंगे।

आत्मनः-
रसनायां जयः प्राप्तः बाह्यभुक्तिव्ययो न च।
स्वास्थ्यं सुरक्षितं तिष्ठेत् चिकित्सकव्ययो न च॥16
पढ़ने वाले ने जीभ पर विजय को प्राप्त कर लिया है। अतः वह बाहर भोजन के लिये खर्चा नहीं करता। उसकी स्वास्थ्य सुरक्षित रहती है अतः चिकित्सक की खर्चा भी नहीं रहती है।

पिपासा वा बुभुक्षा वा तावद्यावन्न पुस्तकम्।
विलासभोजनायेप्सा विविधान्नस्पृहा न वा ॥17
(भोजनालये उपाहारालयादिषु)
प्यास व भूख तभी तक रहता है जब तक पुस्तक ना हो। ‌ विलास भोजन की इच्छा नहीं रहती है और ना ही तरह तरह के खाने में इच्छा।

गार्हम्-
रात्रौ लोकः मग्ननिद्रो तदा जागर्ति पाठकः।
शुनकाय व्ययो नास्ति चोरो नायाति तद्गृहम् ॥18
अब घर से संबंधित प्रयोजन
रात को दुनिया सो जाती है तब पढ़ने वाला जागता है। कुत्ते को पालने का खर्चा नहीं है और चोर उसके घर में नहीं आता है।

पत्न्यस्मान्न बिभेत्यन्ने लावण्याद्यसमस्थितौ ।
स्थाल्यां यद्दीयते मौनं खादत्यक्षरखादनैः॥
गृहे च सर्वदा शान्तिः कलहस्य भयो न च॥19
खाने में नमक इत्यादि का सही मात्रा में होने ना होने के विषय में पत्नी उस से नहीं डरती है। थाली में जो दिया जाता है वह चुप से खा लेता है,‌ अक्षर नाम के अन्न के साथ।

सामाजम्-
नाधिकं भाषते चान्यैः सोदरैर्मित्रबान्धवैः।
मिथ्यावाचो भयं नास्ति चरवाण्या व्ययो न च॥20
सामाजिक प्रयोजन
भाइयों से, दोस्तों से, बंधुओं से वह ज्यादा बात नहीं करता है। झूठ बोलने का डर नहीं रहता है। और चल वाणी की खर्चा भी नहीं रहती है।

भीत्या पुस्तकचर्चायाः गृहं नायाति कश्चन।
न व्ययोतिथिसत्कारैरल्पाहारैश्च पानकैः॥21
पुस्तकों की चर्चा के डर के मारे कोई उसके घर पर नहीं आता। इसीलिए अतिथि सत्कार भोजन पान आदि की खर्चा भी नहीं रहता है।

विनोदस्यास्पदत्वाद्धि पुस्तकस्यैव सर्वधा ।
विहारयात्रादीनामपि नास्ति व्ययो मुधा॥22
हमेशा ही पुस्तक एकमात्र टाइमपास का स्थान होने के कारण, बाहार यात्रा इत्यादि की भी खर्चा नहीं रहती है।

नरस्याभरणत्वाच्च पुस्तकस्यैव सर्वथा।
प्रसाधने ह्यलङ्कारे भूषणेषु व्ययो न च॥23
मनुष्य का आभूषण पुस्तक मात्र के होने से सजने धजने में और अलंकार आदि का खर्चा भी नहीं रहता है।

आध्यात्मिकम्-
भीत्रार्थभयहेतुर्न पञ्चमी न भयेन वा।
अभयं जीवलोकाय दत्त्वा चरति निःस्पृहः॥24
अब आध्यात्मिक प्रयोजन
भय हेतु पंचमी (विभक्ति)नहीं रहती है। वह पूर्ण जीव लोक के लिए अभय दान देकर जीता है।

सर्वावस्थासु देशेषु कालेषु च महीतले।
आकाङ्क्षतीदमेवायं तेन जीवामि च म्रिये॥25
सभी अवस्थाओं में देश कालों में भूतल पर वह यही चाहता है कि- पुस्तक के साथ ही जियूँ एवं मरूँ।

जानामि न तपो योगं ध्यानं मन्त्रं न साधनाम्।
ग्रन्थपारायणं नित्यं यावज्जीवामि भूतले॥26
मैं कोई तपस्या, योग, ध्यान, मंत्र, साधना नहीं जानता हूं। पर जब तक इस दुनिया में जीवित रहूंगा तब तक पुस्तक का पारायण करूंगा।

इतिहासपुराणानि सत्काव्यानि पठामि च।
मननं च करिष्यामि तेषामर्थान् सदा मुदा॥27
इतिहास पुराण अच्छे-अच्छे काव्य पढ़ लूंगा। और उनके अर्थों को मनन करूंगा।

यत्र गेहे ग्रन्थधानी सा काशीति स मन्यते।
अध्येयानां च ग्रन्थानां दीर्घा सूची च निर्मिता॥28
जहां पर घर में पुस्तक रखने की रैक है वही काशी है ऐसा वह मानता है। पढ़ने के लिए ग्रंथों की दीर्घ सूची उसने तैयार कर ली है।

यदि मृत्युर्घटेत प्रागवशिष्टेषु तेष्विह।
पुनर्मानवजन्मेच्छा तेषामध्ययनाय हि॥29
यदि उनमें से पढ़ने वाले पुस्तक बच जाने पर उसकी मृत्यु हो जाती है तो वह उनके अध्ययन हेतु पुनः जीवन प्राप्त करना चाहता है।

शब्दाह्वयेन दीपेनैवं काशयति स्वयम्।
लोकान् काशयते यस्स पठिता जयतात् भुवि ॥30
शब्द नाम के दीपक से वह स्वयं को प्रकाशित करता है। और पूरे लोक को भी प्रकाशित करता है। ऐसे पढनेवाले की जय हो।

  https://youtu.be/hJiqWGjj8OI?t=11465
अखिलभारतसंस्कृतकविसम्मेळनम्

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