Saturday 14 July 2018

भाषालेखः-१ संस्कृत-भाषाशिक्षणाय सूचनाः -1

संस्कृत-भाषाशिक्षणाय सूचनाः -1
सर्वे प्रारम्भिकसंस्कृतार्थिनः इदमवश्यं पठन्तु।

संस्कृतं ये शिक्षितुमिच्छन्ति, ते प्रायः भाषां सम्यक् ज्ञातुं स्वीयानि वाक्यानि लिखन्ति। तदर्थं दैनन्दिनजीवनात् सन्दर्भान् पश्यन्ति। अथवा मातृभाषावाक्यानि स्वीकुर्वन्ति। यथा- सूक्तयः, भावप्रेरकवाक्यानि वा। किन्तु तत्र विचाराभिव्यक्तौ क्लिष्टता भवति। एते तद् अज्ञात्वा तत्र एव प्रयत्नरताः भवन्ति। तानि वाक्यानि कोऽपि परिष्करोतु इति आशान्विताः वर्तन्ते।  पुनः ‘कोऽपि संस्कृतज्ञः मम साहाय्यं न करोति, दोषापकरणं न करोति’ इति चिन्तनपराः, अभिप्राययुक्ताः च भवन्ति। केचित्तु साहाय्याभावेनैवाहं न किमपि शिक्षितुं प्रभवामीति त्यजन्ति च।
    एतत् न युक्तम्। यानि कान्यपि वाक्यानि स्वीकृत्य संस्कृते अनुवादनाय प्रयतनं सम्यक् कार्यं नास्ति। तदर्थं सरलानि मातृभाषावाक्यानि भवेयुः। एतेषां वाक्यचयनमेव दोषाय। प्रायः तृतीय-चतुर्थ-कक्षायाः वा पाठ्यपुस्तकानि स्वीकुर्युः। एते प्रारम्भिकाः तत्र भेदं न जानन्ति। नामपदानि, क्रियापदानि, विभक्तीः, कृदन्तान्, तिङन्तान्, अव्ययानि च सम्यक् अज्ञात्वैव ते अनुवादने रताः भवन्ति। तन्न युक्तम्।
    ‘एतन्न करोतु’ इति वचनात् प्राक् किं करणीयमिति सूचनमपि मनसि ध्यातव्यम्। अतः अद्य मम मनसि एका पद्धतिः स्फुरिता। संस्कृतभारत्याः भगवद्गीतायां एवमेव अभ्यासः दत्तः। ततः प्रेरिताहं एतत् सूचयामि।
    (अ) यत् किमपि सरलं गद्यं, कथां वा संस्कृतमूलपुस्तकं भवेत् । अथवा श्लोकयुक्तं वा सुभाषितपुस्तकं स्वीकुर्वन्तु यत्र अन्वयः अवश्यं भवेत्। अन्वयवाक्यं दृष्ट्वा, अथवा गद्ये एकं वाक्यं स्वीकृत्य तत् विभागं कृत्वा अल्पवाक्यानि निर्मान्तु।
    यथा http://subhashita-deepashikha.blogspot.com/2018/05/32.html इदं पश्यन्तु।
    अत्र इदं अन्वयवाक्यं- “हेम्नः- तापेन च्छेदने कर्षणेन वा खेदः न (भवति)। यद् गुञ्जा-समतोलनं, तद् एव हि (तस्य) परं दुःखं (भवति)॥” अस्य लघुवाक्येषु भङ्गः एवं भवितुमर्हति-
१.    हेम्नः खेदः भवति।
२.    हेम्नः तापेन खेदः न भवति।
३.    हेम्नः परं दुःखं भवति।
४.    हेम्नः यद् गुञ्जा-समतोलनं भवति, तद् एव दुःखं भवति।
एवं रीत्या अग्रे बहुविधं प्रयतनं कर्तुं शक्यते। तेन व्याकरणपरिष्कारस्य आवश्यकता एव न भवति।

द्वितीयं- अस्यैव वाक्यस्य अन्यथा लेखनाय अपि प्रयत्नः क्रियताम्। यथा-
१.    सुवर्णस्य छेदने खिन्नता न भवति।
२.    गुञ्जया तोलयामः, तदा महद् दुःखं स्वर्णस्य भवति।
३.    हेमं एवं चिन्तयति – मम गुञ्जया तोलनं न भवतु इति।
इत्येव अगणितरीत्या वाक्यानि निर्मान्तु। अत्र तु परिष्क्रिया अपेक्षिता।

    (आ) पुनः चित्रव्याख्या विधानेन अपि भाषा अभिवर्धते। किञ्चित् चित्रं स्वीकृत्य तस्य वर्णनं कुर्वन्तु। अद्यतनचित्रं पश्यन्तु। तस्य व्याख्या एवं भवेत्।
१.    अत्र द्वौ स्तः।
२.    तौ पतिः पत्नी च चलतः।
३.    तौ मार्गे चलतः।
४.    मार्गः सुन्दरः अस्ति।
५.    तत्र एकः वृक्षः अस्ति।
६.    पत्नी पतिम् अनुसरति।
७.    पतिः अग्रे चलति।
८.    सः पत्न्यै मार्गं दर्शयति।
९.    स्त्री सुन्दरशाटिकां धरति।
१०.    तस्य शाटिकायाः वर्णः रक्तः।
११.    पुरुषः उत्तरीयं धरति।
१२.    तस्य नेत्रे सुन्दरे स्तः।
    एवं रीत्या भवतः संस्कृतभाषाज्ञानस्य स्थितिमाश्रित्य वाक्यानि निर्मातुं शक्नुवन्ति। ऊहयापि लिखितुं शक्नुवन्ति। किन्तु नियमस्तु स एव- तत्र एक एव कर्ता, कर्म, क्रिया च भवेयुः। कदाचिद् अव्ययं भवेत्। विशेषणानि भवेयुः। किन्तु सरलस्थायिकं सर्वं भवेत्। लघूनि वाक्यानि भवेयुः- इति प्राथमिकः नियमः।
    एवंरीत्या लेखनाभ्यासाय प्रयतन्ताम्। अवश्यं विजयः प्राप्यते। शुभमस्तु।

 --उषाराणी सङ्का
१४.०७.१८


సంస్కృత-భాషాశిక్షణాయ సూచనాః -1 
ప్రారంభిక సంస్కృతార్థులు దీనిని అవశ్యం చదవండి.

సంస్కృతం నేర్చుకోవాలని కోరుకునేవారు, భాషను బాగా తెలుసుకోవాలని అనుకునేవారు స్వీయ వాక్యాలను వ్రాస్తుంటారు. దానికోసం దైనందిన జీవన సందర్భాలను గ్రహిస్తారు. లేదంటే మాతృభాషలో వాక్యాలను తీసుకుంటారు. ఉదా- సూక్తులు లేదా భావప్రేరకాలైన వాక్యాలు. కానీ అక్కడ ఆలోచనను ప్రకటించటంలో క్లిష్టత్వం ఉంటుంది. వీరు అది తెలుసుకోక అక్కడే  ప్రయత్నం చేస్తుంటారు. ఆ వాక్యాలను ఎవరైనా పరిష్కరించాలి అని ఆశ కలిగి ఉంటారు.  అది జరగక ‘ఏ సంస్కృతజ్ఞులూ నాకు సహాయం చేయటం లేదు, దోషాలను సూచించటం లేదు’ అని చింతపడతారు, ఒక చెడు అభిప్రాయాన్ని ఏర్పరుచుకుంటారు. కొందరైతే ‘సహాయం లేనందునే నేను ఏమీ నేర్చుకోలేక పోతున్నాన’ని వదిలిపెట్టేస్తారు కూడా.
    ఇది సరైనది కాదు. ఏవో ఒక వాక్యాలను తీసుకుని సంస్కృతంలోకి అనువాదం చేయాలని ప్రయత్నించటం సరైన పని కాదు. దానికై సరలమైన మాతృభాష వాక్యాలు కావాలి. వీరు వాక్యాలను ఎంచుకోవటంలోనే దోషం చేసేస్తారు. మూడు-నాలుగు తరగతుల పాఠ్యపుస్తకాలను తీసుకోవాలి. ఈ ప్రారంభికులకు అక్కడ తేడా తెలియదు. నామపదాలు, క్రియాపదాలు, విభక్తులు, కృదంతాలు, తిఙంతాలు, అవ్యయాలు కూడా కనీసం సరిగా తెలుసుకోకుండా అనువాదం చేసేయాలని ప్రయత్నిస్తారు. అది పాటి కాదు.
    ‘ఇది చేయకూడదు, అది వలదు’ అని చెప్పేకంటే ఏమి చేయాలో సూచనం చేయాలి అని నియమం. అందువల్ల ఇవాళ నా మనసులో ఒక పద్ధతి స్ఫురించింది. సంస్కృతభారతివారు భగవద్గీతకు ఈ విధంగానే అభ్యాసం ఇచ్చారు. అది చదివి ప్రేరణ పొంది ఇది  సూచిస్తున్నాను.

    (అ) ఏదైనా ఒక సరలమైన గద్యమో, కథో సంస్కృతమూలపుస్తకం తీసుకోండి. లేదా శ్లోకయుక్తమైన సుభాషితపుస్తకం తీసుకోండి- అందులో అన్వయం తప్పకుండా ఉండాలి. అన్వయవాక్యాన్ని చూసి, లేదా గద్యంలో ఒక వాక్యం తీసుకుని దాన్ని విభాగం చేసి చిన్నవాక్యాలను చేయండి.
    ఉదా- http://subhashita-deepashikha.blogspot.com/2018/05/32.html దీన్ని చూడండి.
    ఇక్కడ ఇది అన్వయవాక్యం- “హేమ్నః- తాపేన చ్ఛేదనే కర్షణేన వా ఖేదః న (భవతి). యద్ గుఞ్జా-సమతోలనం, తద్ ఏవ హి (తస్య) పరం దుఃఖం (భవతి)॥” దీన్ని లఘువాక్యాలుగా ముక్కలు చేస్తే ఈవిధంగా ఉంటుంది-
౧.    హేమ్నః ఖేదః భవతి.
౨.    హేమ్నః తాపేన ఖేదః న భవతి.
౩.    హేమ్నః పరం దుఃఖం భవతి.
౪.    హేమ్నః యద్ గుఞ్జా-సమతోలనం భవతి, తద్ ఏవ దుఃఖం భవతి.
ఇట్లా మరిన్ని విధాలుగా ప్రయత్నం చేయవచ్చు. దానివల్ల వ్యాకరణపరిష్కారం అవసరమే పడదు.

రెడవది- ఇదే వాక్యాన్ని వేరే విధంగా వ్రాయటానికి కూడా ప్రయత్నం చేయవచ్చు. ఉదా-
౧.    సువర్ణస్య ఛేదనే ఖిన్నతా న భవతి.
౨.    గుఞ్జయా తోలయామః, తదా మహద్ దుఃఖం స్వర్ణస్య భవతి.
౩.    హేమం ఏవం చిన్తయతి – మమ గుఞ్జయా తోలనం న భవతు ఇతి.
ఇదే విధంగా లెక్కలేనన్ని రీతుల్లో వాక్యాలను నిర్మించవచ్చు. ఇక్కడ మాత్రం కాస్త పరిష్కారం అపేక్షితమే.

    (ఆ) ఇంకొకటి- చిత్రవ్యాఖ్య విధానం ద్వారా కూడా భాష అభివృద్ధి అవుతుంది. ఒకటేదైనా చిత్రాన్ని తీసుకుని దాన్ని వర్ణించండి. ఈ చిత్రం చూడండి- దీని వ్యాఖ్య ఇట్లా చేయవచ్చు.
౧.    అత్ర ద్వౌ స్తః.
౨.    తౌ పతిః పత్నీ చ చలతః.
౩.    తౌ మార్గే చలతః.
౪.    మార్గః సున్దరః అస్తి.
౫.    తత్ర ఏకః వృక్షః అస్తి.
౬.    పత్నీ పతిమ్ అనుసరతి.
౭.    పతిః అగ్రే చలతి.
౮.    సః పత్న్యై మార్గం దర్శయతి.
౯.    స్త్రీ సున్దరశాటికాం ధరతి.
౧౦.    తస్య శాటికాయాః వర్ణః రక్తః.
౧౧.    పురుషః ఉత్తరీయం ధరతి.
౧౨.    తస్య నేత్రే సున్దరే స్తః.
    ఇట్లా మీ సంస్కృతభాషాజ్ఞానం స్థాయిని బట్టి వాక్యాలను నిర్మించవచ్చు. ఊహ చేత కూడా వ్రాయవచ్చు. కానీ నియమం మాత్రం ఒక్కటే- అక్కడ ఒకే కర్త, కర్మ, క్రియా చ ఉండాలి. ఎక్కడైనా అవ్యయం ఉండవచ్చు. విశేషణాలు ఉండవచ్చు. కానీ సరలస్థాయిలోనే సర్వం ఉండాలి. లఘు వాక్యాలు ఉండాలి- అనేది ప్రాథమిక నియమం.
    ఈవిధంగా లేఖన అభ్యాసం చేయటానికి ప్రయత్నించండి. అవశ్యం విజయం లభిస్తుంది. శుభమస్తు.

संस्कृत-भाषाशिक्षणाय सूचनाः -1 
सभी प्रारम्भिक संस्कृतार्थी इसे अवश्य पढिए।

    संस्कृत सीखने की इच्छा रखने वाले, प्रायः भाषा के सम्यक् ज्ञान के लिए स्वीय वाक्य लिखते हैं। उसके लिए दैनन्दिन जीवन से सन्दर्भों को लेते हैं। अथवा मातृभाषा के वाक्यों को स्वीकारते हैं। यथा- सूक्तियाँ, भावप्रेरक वाक्य। किन्तु वहाँ विचार की अभिव्यक्ति में क्लिष्टता होती है। यह लोग इस विषय से अनजान वहीं प्रयत्नरत रहते हैं। वे आशान्वित रहते हैं कि उन वाक्यों को कोई परिष्कार करें। फिर चिन्तित हो जाते हैं कि ‘कोई भी संस्कृतज्ञ मेरी सहायता नहीं कर रहा, दोषापकरण नहीं होता’ और गलत अभिप्राय रखलेते हैं। कुछ लोग तो धारणा बना लेते हैं कि- सहायता का अभाव के कारण ही हम कुछ सीख नहीं पा रहे।
    यह सही नहीं है। जो कोई भी वाक्य लेकर संस्कृत अनुवाद को प्रयत्न करना सही कार्य नहीं है। उसके लिए सरल मातृभाषा वाक्य हो तो सही होगा। इस प्रकार के वाक्यों को लेना ही दोष है। प्रायः तीसरी चौथी कक्षा के पाठ्य पुस्तकों को लेना चाहिए। यह प्रारंभिक लोग उसमें भेद नहीं जानते। नामपद क्रियापद, विभक्ति, कृदंत, तिङन्त, यह सब ठीक से नहीं जान कर ही अनुवाद में प्रवृत्त हो जाते हैं। यह सही नहीं है।
    ‘यह मत करो, वह मत करो’ ऐसा कहने से पहले क्या करना चाहिए- यह सूचना देना समुचित होगा। अतः आज मेरे मन में एक पद्धति आई। संस्कृतभारती के द्वारा भगवद्गीता पर इसी प्रकार अभ्यास रचा गया। उस से प्रेरित होकर मैं इस विधान को सूचित कर रही हूं।
    (अ) कोई भी सरल गद्य कथा या संस्कृत मूल पुस्तक लें। अथवा श्लोकों से भरा सुभाषित पुस्तक लें जिसमें अन्वय अवश्य हो। अन्वय वाक्य को देखकर या फिर गद्य का एक वाक्य लेकर उसका विभाग करके छोटे वाक्य बनाएं। यथा इसको देखिए-
    http://subhashita-deepashikha.blogspot.com/2018/05/32.html
    यहां पर अन्वय वाक्य है- “हेम्नः- तापेन च्छेदने कर्षणेन वा खेदः न (भवति)। यद् गुञ्जा-समतोलनं, तद् एव हि (तस्य) परं दुःखं (भवति)॥” इस लघुवाक्य का विभाग इसप्रकार होगा।
१.    हेम्नः खेदः भवति।
२.    हेम्नः तापेन खेदः न भवति।
३.    हेम्नः परं दुःखं भवति।
४.    हेम्नः यद् गुञ्जा-समतोलनं भवति, तद् एव दुःखं भवति।
    इस प्रकार आगे अनेक प्रकार प्रयोग किया जा सकता है। उससे व्याकरण परिष्कार की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
    दूसरा है- इसी वाक्य को दूसरे विधान से लिखने का प्रयास करना। जैसे-
१.    सुवर्णस्य छेदने खिन्नता न भवति।
२.    गुञ्जया तोलयामः, तदा महद् दुःखं स्वर्णस्य भवति।
३.    हेमं एवं चिन्तयति – मम गुञ्जया तोलनं न भवतु इति।
    इस प्रकार अनेक रीतियों में वाक्यों को बना सकते हैं। यहां थोड़ी परिष्कार की आवश्यकता होगी।
    (आ) पुनः चित्र व्याख्या विधान से भी भाषा की अभिवृद्धि हो सकती है। कोई भी चित्र लेकर उसका वर्णन कीजिए। यही चित्र देख लीजिए। उसकी व्याख्या इस प्रकार होगी-
१.    अत्र द्वौ स्तः।
२.    तौ पतिः पत्नी च चलतः।
३.    तौ मार्गे चलतः।
४.    मार्गः सुन्दरः अस्ति।
५.    तत्र एकः वृक्षः अस्ति।
६.    पत्नी पतिम् अनुसरति।
७.    पतिः अग्रे चलति।
८.    सः पत्न्यै मार्गं दर्शयति।
९.    स्त्री सुन्दरशाटिकां धरति।
१०.    तस्य शाटिकायाः वर्णः रक्तः।
११.    पुरुषः उत्तरीयं धरति।
१२.    तस्य नेत्रे सुन्दरे स्तः।
    इस विधान से आप संस्कृत भाषा ज्ञान का स्तर के आधार पर वाक्य बना सकते हैं। आप अपनी कल्पना से भी लिख सकते हैं। किंतु नियम तो एक ही हो- उसमें एक ही कर्ता, कर्म, क्रिया हों। कभी-कभी अव्यय हो सकता है। या विशेषण। किंतु सरल स्तर का ही सब कुछ हो। छोटे-छोटे वाक्य हो- यह प्रधान नियम है।
    इस प्रकार लेखन के अभ्यास के लिए प्रयत्न कीजिए आपको अवश्य विजय मिलेगा। शुभं भूयात्।
 --उषाराणी सङ्का
१४.०७.१८